वास्ते हज़रत मुराद-ए- नेक नाम       इशक़ अपना दे मुझे रब्बुल इनाम      अपनी उलफ़त से अता कर सोज़ -ओ- साज़    अपने इरफ़ां के सिखा राज़ -ओ- नयाज़    फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हर घड़ी दरकार है फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हो तो बेड़ा पार है

 

 

हज़रत  मुहम्मद मुराद अली ख़ां रहमता अल्लाह अलैहि 

 

  

हज़रत ख़्वाजा हुज़ैफ़ा मराशी

रहमतुह अल्लाह अलैहि

 

आप का इस्म गिरामी हज़रत हुज़ैफ़ा मराशी रहमतुह अल्लाह अलैहि और लक़ब सदीद उद्दीन था।आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का ताल्लुक़ शाम के इलाक़ा मराश से था आप रहमतुह अल्लाह अलैहि मशाइख़ किबार-ओ-मुतक़द्दिमीन में से थे और सुलतान इबराहीम उद्यम रहमतुह अल्लाह अलैहि के ख़लीफ़ा थे।

हज़रत हुज़ैफ़ा मराशी रहमतुह अल्लाह अलैहि आलम-ओ-फ़कीह बेबदल थे आप रहमतुह अल्लाह अलैहि तीस साल तक बला वजह बे वुज़ू नहीं रहे आप रहमतुह अल्लाह अलैहि हमेशा रोज़ा से रहते और छः दिन बाद इफ़तार किया करते आप रहमतुह अल्लाह अलैहि फ़रमाया करते अहल-ए-दिल की ग़िज़ा तो ला इला अल्लाह मुहम्मद रसूल अल्लाह ही है।

एक दिन बुज़्रगान-ए-दीन - के ख़िलाफ़ चंद बेवक़ूफ हज़रात हज़रत हुज़ैफ़ा मराशी रहमतुह अल्लाह अलैहि की ख़िदमत में हाज़िर हुए और आप के मुताल्लिक़ सख़्त गुफ़्तगु करने लगे। हज़रत हुज़ैफ़ा मराशी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने उन्हें वाज़-ओ-नसीहत की और अल्लाह के अज़ाब से डराया मगर उन्हों ने आप का हाथ पकड़ कर खींचना शुरू कर दिया। जिस से आप को बहुत तकलीफ़ हुई। वो लोग कहने लगे कि अगर तुम वली अल्लाह हो तो हमारे लिए बददुआ करो। हज़रत हुज़ैफ़ा मराशी रहमतुह अल्लाह अलैहि के मुँह से तीन बार आह आह निकला और मुँह से शोले निकलते दिखाई दिए और वो तमाम के तमाम जल कर राख होगए। नऊज़बिल्लाह बह ग़ज़ीब अलावलयाइआलला।

एक दिन हज़रत हुज़ैफ़ा मराशी रहमतुह अल्लाह अलैहि अल्लाह के ख़ौफ़ से रो रहे थे कि एक शख़्स आया और इस ने पूछा कि इस क़दर गिरिया ज़ारी और इज़तिराब क्यों है क्या आप अल्लाह ताला को ग़फ़ूर-ओ-रहीम नहीं पाते। आप ने फ़रमाया अल्लाह ताला फ़रमाता है "एक तबक़ा जन्नत में होगा, एक जहन्नुम की सख़्तियों में रहेगा" मुझे ये मालूम नहीं कि में किस तबक़ा में हूँगा। उस शख़्स ने कहा कि अगर आप को अपनी आक़िबत की ख़बर भी नहीं तो लोगों से बैअत क्यों लेते हैं। इस तरह दूसरों को भी अंधेरे में रखते हैं। ये सन कर हज़रत हुज़ैफ़ा मराशी रहमतुह अल्लाह अलैहि नाराज़न हुए और बेहोश होगए। होश में आए तू ग़ैब से आवाज़ आई कि ए हुज़ैफ़ा हम तुम्हें अपना दोस्त रखते हैं और बर्गुज़ीदा क़रार देते हैं। मैदान-ए-हश्र में अस्हाब जन्नत में उठोगे। ये आवाज़ तमाम हाज़िरीन ने सुनी। उस दिन तीन सौ काफ़िर हलक़ा इस्लाम में दाख़िल हुए और आप से बैअत की।

तज़करालाशक़ीन के मुसन्निफ़ ने हज़रत हुज़ैफ़ा मराशी रहमतुह अल्लाह अलैहि कयास दार फ़ानी से रुख़्सती का सन १४ शवाल २७६ हिज्री लिखा है जबकि साहिब सीरालाक़ताब ने२४शवाल २५२हिज्री लिखा है। तमाम तज़किरा निगारों का इस पर इत्तिफ़ाक़ है कि आप हज़रत इबराहीम बिन उद्यम रहमतुह अल्लाह अलैहि के बाद नौ साल तक ज़िंदा रहे। आप का मज़ार शरीफ़ बस्रा में है।